गाँव सातरोड़ के इतिहास की कहानी
क्यों पड़े हो शहर की मरोड़ म , एक ब आके देखो मारे गाम सातरोड़ म
क्यों पड़े हो शहर की मरोड़ म , एक ब आके देखो मारे गाम सातरोड़ म
शीर्षक
“ गाँव सातरोड़ के इतिहास की कहानी “
उद्देश्य :-
नवयुवकों एवं
ग्रामवासियों को इतिहास की जानकारी देना
सौजन्य : - सेवा निवृत कर्मचारी संघ हरियाणा
शाखा :- सातरोड़ खुर्द एवं खास |
संकलन कर्ता
पंजाब सिंह एवं सहयोगी मित्र
सातरोड़ छोटी (हिसार)
पिन - 125044
अध्याय – एक
हिसार नगर एवं सात उजड़ खेड़ो की कहानी
(1)
हिसार फारसी भाषा का
शब्द है | इस का अर्थ किला या घेरा है | यह नगर दिल्ली के
बादशाह फिरोजशाह तुगलक ने 1354 ई० में आबाद हुआ था | यह भारत के राष्ट्रीय
राजमार्ग न* 10 पर दिल्ली के पश्चिम में 164 कि*मी*दूर स्थित है | जिस स्थान पर यह
नगर आबाद किया गया था वहां एक प्राचीन निर्जन थेह था | इतिहासकारों का मानना है कि
उस थेह के स्थान पर जो प्राचीन नगर आबाद था , उस का नाम इसुकार अथवा इषुकारी था जो
सरस्वती नदी की सहायक नदी दृषदती के तट पर विराजमान था |
किसी प्राकृतिक आपदा
अथवा बाहरी आक्रमण के कारण इसुकार नगर बर्बाद हो गया और निर्जन थेह में बदल गया था
|
(2)
सात उजड़ खेड़े ( निर्जन थेह )
क .
वर्तमान राष्ट्रीय
राजमार्ग न* 10 को प्राचीन काल में सुलेमान मार्ग कहा जाता था जो दिल्ली से हिसार –
भटिंडा होते हुवे लाहौर से इरान – इराक जाता था |
ख .
हिसार नगर के पूर्व
में सुलेमान मार्ग के अगल-बगल में सात उजड़ खेड़े (निर्जन थेह )
थे | उन के नाम आम जन भाषा में-
1* आड़द खेड़ा
जो सत्रोड़ खास के उत्तर में था | उस खेड़े में स्वर्गीय श्री चन्दगीराम सैनी
बिश्नोलिया को मिटटी खोदते हुवे एक प्राचीन घडा मिला था | वह घड़ा 3 फुट 10 ईन्च
ऊचां और उसका 9 फुट का घेरा है जिसमे 2 क्विंटल अनाज आता है | अब यह खेड़ा लोप हो
चुका है |
2* शहरी (शेरी)
खेड़ा – यह खेड़ा सातरोड़ खुर्द एवं खास के पश्चिम में स्थित था | इस खेड़े पर
सातरोड़ खुर्द एवं खास में आबाद शूरसैनी महाराज के वंशज बिश्नोलिया गोत्र के सैनी
जाति के लोग निवास करते थे | इस की पुष्टि स्वर्गीय श्री मुंशीराम पंच एवं सरपंच
रह चुके थे से 1996-97 ई* में हुई थी | स्वर्गीय श्री गुगनराम सैनी को इसी खेड़े पर
कुछ सिक्के मिले थे जिनका चित्र साथ में दिया हुआ है | आजकल इसके स्थान पर चाननमल
वाली पाईप फैक्ट्री बनी हुई है था कॉलोनी आबाद हो चुकी है | यह खेड़ा लोप हो चुका
है |
3* रत्ता खेड़ा – यह
खेड़ा रेलवे फाटक के पार बने इंडस्ट्रियल एरिया के लिए पानी की ऊँची टंकी के आसपास
था | इसमें मिला था एक मिटटी का टुटा हुआ बर्तन का टुकड़ा जिसकी चित्रकारी देखने
योग्य है | इसका चित्र निचे है | यही पर स्वर्गीय श्री ओमप्रकाश पुत्र श्री
मुंशीराम ग्रेवाल को अंग्रेजी काल के ताम्बे के सिक्के मिले थे | यह खेड़ा भी लोप
हो चुका है|
4* भोरी खेड़ा – यह
खेड़ा बालसमंद नहर से पार सातरोड़ –डाबडा रोड पर स्थित था | इसके पास धौली पाल (
सफेद मिटटी ) का टिल्ला और एक छोटी जोह्डी भी होती थी जिसे भोरी जोहड़ी कहते थे |
आज वह मिटटी का टिल्ला , जोहड़ी और भोरी खेड़ा लोप हो चुके है परन्तु यह खेड़ा आज भी
अपना वजूद लिए हुवे है जहा बाबा भोरी खेड़े वाले का मन्दिर बना हुआ है जिसे इस तरफ
के भोरी हेर वाले लोग प्रति महीने अमावश के दिन घी का दीपक लगा कर पूजा अर्चना
करते है , मिन्नत मांगते है और इस दिन खेत की बुआई करने के लिए बैल से हल नही
जोतते और न ही रेह्डू , गाडी में बैल जोतते है |
5* निन्द्याना खेड़ा –
यह खेड़ा डाबडा , लाडवा और सातरोड़ कला की सीमा पर बने पेटवाड़ नहर तथा हरिता –
मंगाली नहर और हिसार माइनर इन तीनों का नहर पर हैड बना हुआ है जिसे तिमोंदी कहते
है | उस के समीप यह थेह था | इस के साथ एक बहुत बड़ा तालाब भी था जिसे निन्दाना
जोहड़ कहते थे | अब यह थेह और तालाब लोप हो चुके है | इस गाँव में आबाद निन्दानिया
गोत्र के धानको का बुजुर्ग स्वर्गीय श्री बिरसालाराम जी कहा करते थे कि हमारे
बुजुर्ग इसी थेह पर आबाद बस्ती में रहते थे जब दहाडूओ ने हमारी बस्ती को लुट लिया
तथा आग लगा कर बस्ती को उजाड दिया था तब हमारे बुजुर्ग नलवा गाँव में चले गये थे |
बाद में जब छोटी सातडौज में काम काज (रेजा खद्दर बुनना) शुरू हुआ तब हमारा परिवार
सत्रोड़ खुर्द में नलवा से आकर यहा आबाद हो गया था | इस थेह में मिटटी के छोटे छोटे
खिलौनो जैसे बर्तन तथा सिक्के मिले थे जिन का चित्र साथ में दिया हुआ है |
6*
बहन्गिपुर-मेहंदीपुर थेह – यह थेह हिसार हांसी मार्ग पर बालसमंद ब्रांच के सड़क
वाले पुल से आगे जहा जनक फैक्ट्री बनी हुई है उसके आमने सामने स्थित था | ये दोनों
राष्ट्रीय राजमार्ग न* 10 के उत्तर तथा दक्षिण में थे | दक्षिणी थेह मेहंदीपुर
कहलाता था था तथा उत्तरी भाग बह्न्गिपुर थेह कहलाता था | दोनों के बीच से सड़क
निकली हुई थी | इन में से मेहंदीपुर थेह पर स्वर्गीय श्री तेजुराम ग्रेवाल को अपना
खेत समतल करते हुवे कुछ सिक्के मिले थे जिन का चित्र साथ में है | बहन्गिपुर थेह
पर स्वर्गीय श्री रतिराम जी को एक दो सिक्के व् पशु चराते हुवे मिले थे जिन का
चित्र साथ में है |
7* मियादाद खेड़ा –
यह खेड़ा सातरोड़ कलां में सरकारी अस्पताल के सामने जो शमशान घाट बना हुवा है वहीं
पर स्थित है | इस के समीप रमेश नामक पूनिया का खेत था उसे समतल करते हुवे एक छोटी
कुलड़ी में ताम्बे के कुछ सिक्के मिले थे जो उस सिक्के को मसुरिया कहते थे परन्तु
मुझे वह सिक्का स्वर्गीय श्री उजाला राम भोंसले ने दिया था उसे पढ़ाने से पता चला
कि यह सिक्का महमूद गजनी के समय का बना हुवा है जिसका चित्र साथ में है |
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अध्याय- दो
(1)
सारस्वत ब्रह्म बही
भाठ श्री किशनलाल गिरधारी लाल जी डूंगरगढ़ (राजस्थान) के अनुसार पटियाला रियासत के
राजाओं के वंशज राजा हेमहेल (हेमराव) तथा महाराजा फूलसिंह के समय में लुदास
(लदुवास) लुदेसरवास नामक परगना आबाद हुआ था जिसमे सारस्वत कन्व (दुबे) ब्राहमण ,
ग्रेवाल ,सिन्धु , चानी तरखान , कपुरगोत्री नाई , राणा , झोरड़ , सहारण , जाखड ,
फोगाट , सीलन ,माहिच ,नागर , डैकवाल , सभ्रवाल ,बरडू , सैनियो के बिश्नोलिया
,ज्माल्पुरिया ,सांखला , किरोडिवाल , गिरनु , खुडानिया , दहिया , मिटाऊ और बोलिया
गोत्र के लोग निवास करते थे | इन सभी लोगो के बुजुर्ग पटियाला रियासत के राजाओं की
सेना में सैनिक थे | यह परगना 1559 ई* तक आबाद था परन्तु भठी मुसलमानों के आक्रमण
के कारण यह लुदास परगना छिन्न भिन्न हो गया और उपर लिखित सभी वर्गो के लोग अलग अलग
स्थानों पर जाकर रहने लगे तथा लुदास परगना पर भठियो का कब्जा हो गया था |
(2)
टाड राजस्थान तारीखे हिन्द का हिंदी रूपान्तर केशव
कुमार लेखक इलाहबाद बीकानेर प्रकरण के अनुसार जोघारव राठौर ने 1459 ई* में जोधपुर
नगर आबाद किया था | उस के दो पुत्र थे बीका जी और बीदा जी | महाराजा ने अपने राज्य
को दोनों पुत्रों में बाट दिया | बीका जी को पश्चिमी भाग तथा बीदा जी को पूर्वी
भाग मिला था | राजा बीका जी ने अपने राज्य की सीमाओं को जांगल प्रदेश (घघर नदी )
तक बढ़ाने की मुहीम चला दी | उस ने जाटो के कई परगनों झांसल , सिधमुख , भादरा आदि
पर आक्रमण करके अपने राज्य में मिला लिया और बीकानेर नगर आबाद करके अपनी राजधानी
बनाया था | राठोरों की बडती शक्ति को देखकर दिल्ली के बादशाह ने हिसार क्षेत्र के
सूबेदार सारन्ग्खा को 500 पठान सैनिको को लेकर बीका जी पर आक्रमण कर दिया था | उस
आक्रमण में बीका जी का चाचा कान्घ्लराव युद्ध करते हुवे स्वर्ग सिधार गया | बीका
जी ने अपने चाचा की मृत्यु का बदला लेने के लिए तीसरे दिन हिसार के सूबेदार
सारन्ग्खा के क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया | इस युद्ध में सारन्ग्खा मारा गया | अब
हिसार क्षेत्र का प्रशासक मोहबतखां को बनाया गया |
(3)
सातरोड़ कलां गाँव
आबाद होने की कहानी इस प्रकार है | पूनियों के कई परगनों पर बीका जी का अधिकार हो
जाने पर जिन लोगों ने बीका जी की दासता स्वीकार कर ली वो तो वहीं रहते रहे परन्तु
जिन्होंने स्वीकार नही की वे अलग-अलग दल बनाकर हिसार-हांसी नगर की तरफ आ गये और कन्न्हो,
किरोड़ी, खरक पूनिया , ज्ञान पूरा सरहेडा आदि गाँव आबाद कर लिए | गाँव आबाद करने की
स्वीकृति हिसार क्षेत्र के सूबेदार मोहब्बतखां से ली गयी थी | सब से आखिर में एक
दल ने लाडवा गाँव आबाद किया तथा दुसरे दल ने दिल्ली के बादशाह बहलोल लोघी जी के
समय में हिसार के सुबेदार मोहब्बतखां की मंजूरी से 1480-85 ई* के बीच पूनियों के
इस दल ने अपना गाँव आबाद कर लिया | इस दल के मुखिया रखुराम , छान्नुराम पूनिया थे
| उनके साथ धेरड ब्राहमण , भादर सरोहा नाई , लालन गोत्री भार्गव परिवार , पुहाल
गोत्री बाल्मीकि , भोंसले चमार , हरेडा , खटक धाणक आदि लोग भी थे | हिसार नगर के
पूर्व में जो सात उजड़ खेड़े थे उन में से एक खेड़ा मियादाद खेड़ा भी था | उसी खेड़े पर
यह गाँव आबाद हुआ था | उन्ही सात उजड़ खेड़ो की पहचान रखते हुवे गाँव का नाम सातडौज
अथवा सातडुज रखा गया था | जो बाद में बिगड़ कर सातरोड़ कहलाया | सब से पहले उन सात
उजड़ खेड़ो के बीच में जो गाँव आबाद हुआ था उसे आज सातरोड़ कलां कहते है |
(4)
भूमि बन्दोबस्त
1862-63 जो अंग्रेजो ने किया था , उस में स्पष्ट लिखा है कि सात उजड़ खेड़ो के कारण
इस गाँव का नामकरण सातडुज अथवा सातड़ोज रखा गया था जो बाद में बिगड़ कर सातरोड़
कहलाया | भूमि बन्दोबस्त के समय इस गाँव में कुल 139 परिवार थे | इनके रखा , सोतु
, रिखान , गिदा भागमल , केवल गुरुदास (गिरवान) आदि पाने ( बगड ) थे | इन बगड़ो में
पूनिया , घानिया , दलाल , गोधाना , ग्रेवाल (गिरवान) बरडू आदि व् जाट तथा चमार
हरेडा , भोसला खाती , कुशा , छिम्बी , हजाम , महाजन , गोसाई , खटक , धानक ,,
कुम्हार , लुहार , सिक्का (झिवर) आदि जातिया निवास करती थी | यह गाँव बीच में
बाहरी आक्रमण , महामारी अथवा प्राकृतिक
आपदा आदि के कारण यह गाँव एक बार बिलकुल खाली हो चुका था | बाद में सवंत 1850
अर्थात 1794-95 ई* में दोबारा से फिर दुसरे स्थान ( जो वर्तमान है) पर आबाद हुआ है
| इस गाँव का रकबा 19078 बीघे तथा 11 विश्वे था |
(5)
जन श्रुति के अनुसार
1480-85 ई* के बीच जब यह गाँव आबाद हुआ था तब इस गाँव को सातो उजड़ खेड़ो की कृषि
तथा गैर कृषि भूमि दी गयी थी और उन सातो खेड़ो की भूमि का आबयाना इस गाँव को देना
पड़ता था | पशु कर तथा आन्गकर साल में एक बार लगता था | कभी कभी धुँआ कर भी लगाया
जाता था |
(6)
छोटी सातरोड़ गाँव
आबाद होने की कहानी इस प्रकार है | जिस समय दिल्ली पर अकबर बादशाह शासन करता था तब
बीकानेर रियासत का राजा कल्याण सिंह 1570 ई* में स्वर्ग सिधार गया था तब उसका
पुत्र राजा रायसिंह हड्डियों की भस्मी लेकर हरिद्वार गया था | वहां से वापिस आते
समय वह दिल्ली में बादशाह अकबर से मिला था | अकबर ने उसे राजा की उपाधि दी तथा
हिसार क्षेत्र का सूबेदार बनाकर चार हजार अश्वारोही सेना का सेनापति बनाकर हिसार
भेजा था |
जन श्रुति एवं अप्रकाशित लेख के अनुसार लगभग 1572-73 ई* में हिसार क्षेत्र के सूबेदार राजा रायसिंह के समय में राजपूत लोग ददरेडा (तारानगर) परगने राजस्थान से निकास करके हिसार क्षेत्र में आकर अलग से गाव आबाद करने की प्रार्थना सूबेदार राजा रायसिंह से की थी। राजा रायसिंह ने सातडूज अथवा सातडोज के पूनियों के अधिकार क्षेत्र में जो सात उजड़ खेड़े थे उनमे से दो उजड़ खेडो की कृषि और गैर कृषि भूमि छीन कर राजपूत परिवारों को देकर 1572-73 ई* में उन्हीं सात उजड़ खेड़ों के बीच में दूसरा गाँव और आबाद कर दिया । उन राजपूतों के साथ ददरेडा परगने से ही निकास करके भानखड़ गोत्र के चमार भी आये थे । वे लोग आज भी इस गाँव में निवास कर रहे है ।
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(8)
सातरोड खास गाँव की कहानी
1559 ई* में जब लुदास परगना छीन भिन्न हुआ था तब वहां से निष्कासित हुवे सभी जातियों के लोगों ने छोटी सातडूज के उत्तर में स्थित एक तालाब जो पुरानी चीतंग नहर के आसपास था, वहां काफी खाली जगह पड़ी थी, वहीं पर दो तीन दिन तक विश्राम किया था । जब हिसार क्षेत्र पर सिख राजा अमरसिंह का शासन हुआ तब वे सभी जातियों के लोग एक संगठन बनाकर राजा के दरबार में अपना एक निश्चित ठिकाना अर्थात गाँव आबाद करने के लिए पेश हुवे । पटियाला रियासत के राजा अमरसिंह ने उनको अग्रोहा में दफ्तर बनाकर रहने वाले उनके प्रधानमन्त्री श्री नानुमल के पास भेज दिया । प्रधानमन्त्री ने उनकी लुदास परगने को छोड़ने की दुःख भरी कहानी सुनकर उन्हें अपनी पसन्द की जगह देख कर गाँव आबाद करने की इजाजत दे दी । तब उन्होंने सलाह कर के हिसार नगर के पूर्व में स्थित राजपूतो वाले गाँव के उत्तर में बांगली नदी (चीतंग नहर) के आसपास खली स्थान पर तालाब के किनारे अपनी विशेष पहचान वाला गाँव आबाद करने की ठान ली थी क्योकि यहीं स्थान लुदास परगना छोड़ने वाले उनके बुजुर्गों की शरण स्थली रही थी । इस लिये बुजुर्गों की प्राचीन स्मृति स्थली पर उन सात उजड़ खेड़ों के बीच तीसरा गाँव आबाद कर लिया । ग्रेवालो के बुजुर्ग चंद्रभान तथा मनसुख सारस्वत ब्राह्मण प* पोलूराम कण्व द्विवेदी ,खड्गा सिंधु गोपाल सिंह के वंशज बाबर सिँह कपूरनाई , सहारण, नागर, सीलन, धानक, चानी तरखान, जांगिड़, फौगाट,राणा, झोरड़, माहिच, सभरवाल, तथा सैनियों के बिश्नोलियां, जमालपुरिया, किरोड़ीवाल, खुडानीया, दहिया, मिटाऊँ, बोलिया, दर्जी तथा मनियार, बाल्मीकि आदि सभी की उपस्थिति में भूमि पूजन कर्मकाण्ड करवाने के बाद श्री कर्मचन्द जाखड़ के हाथों नगर खेडे की झंडी 1775-76 ई* में रोपी थी । गाँव तो आबाद कर लिया परन्तु गाँव का नाम करण नही ही सका क्योकि उस समय पटियाला के सिख राजा अमरसिंह युधों में ही लगे हुवे थे।
(9)
सिक्खों की बढ़ती शक्ति को कमजोर करने के लिए दिल्ली के बादशाह ने 1781 ई* में नजफअलिखा और राजपूत राजा जयसिंह को हिसार क्षेत्र पर हमला करने के लिए भेजा । तब जींद के राजा गजपत सिंह की मध्यस्थता से एक समझोता हुआ जिस मे हांसी, हिसार, रोहतक, टोहाना, तोशाम के क्षेत्र दिल्ली के बादशाह को लोटा दिए। फतेहाबाद सिरसा के क्षेत्र भठी मुसलमानो को मिले। राजा अमर सिंह के पास घघर नदी के आस पास का इलाका रहा। राजा अमरसिंह वापिस पंजाब में चला गया | सिक्खों के जाने का प्रभाव नये आबाद
हुवे गाँव पर भी पडा जिसके कारण उस गाँव का नामकरण अधर में लटक गया | अब राजा
जयसिंह हिसार क्षेत्र का नजीब (प्रशासक) बन गया जिसके कारण छोटी सातडुज के
राजपूतों का होसला और भी बढ़ गया | अब भी यह गाँव छोटी सातडुज ही रहा | गाँव में दो
बास जरुर हो गये, एक जाटों का बास , दुसरा राजपूतों का बास |
(10)
हिसार क्षेत्र में विक्रमी संवत 1840 ई* अर्थात 1783 ई* में चालीसा भयंकर अकाल
तथा संवत 1856 में अर्थात 1798-99 ई* में उस से भी भयंकर छप्पना अकाल पड़ा था | इन
अकालो के कारण क्षेत्र के लोगो की आर्थिक अवस्था बिगड़ गयी और पानी तथा अनाज की कमी
के कारण इस हिसार क्षेत्र में बहुत से गाँव खाली हो गये थे , और लोग अपने घर ,
गाँव छोड़ कर दूर नदियों के क्षेत्र में अर्थात सुरक्षित स्थानों गाँव सावड व्
मान्हेरू चले गये थे | वहां पर वे लोग आज भी अपने आप को सातडूजिये कहलाते है |
अकाल पड़ने के कारण कोई फसल आदि नही हुई जिस के कारण उन से भूमि आबयाना सरकारी
खजाने में नही भरा जा सका था | इस लिए सरकारी दबाव के कारण भी उन लोगो (राजपूतों)
को सातडुज छोटी गाँव छोड़ना पड़ा परन्तु भानखड गोत्र के चमारो का परिवार यही रहता
रहा जो आज भी यही निवास करते है | स्वतन्त्रता के बाद श्री राजपाल भानखड सरपंचतथा
रामफल नम्बरदार बना हुआ है |
(11)
जार्ज थामस एक आयरिश नागरिक था | अपनी तेज प्रतिभा के कारण वह हरियाणा क्षेत्र
का स्वतंत्र राजा बन बैठा | सबसे पहले हान्सी नगर में स्थित पुराने दुर्गे की
मरम्मत करवाकर उसे छावनी का रूप दिया तथा प्रशासनिक मुख्यालय भी हांसी ही बनाया था
| धीरे धीरे लगभग 1791 ई* में उसने सिक्खों द्वारा किये गये खाली क्षेत्र पर भी
अधिकार जमा लिया | उस का शासन 1802 ई* तक चला था | राजपूतों द्वारा छोड़ी गयी कृषि
तथा गैर कृषि भूमि जो दो उजड़ खेड़ो में थी | उस सारी भूमि का पांच साल का आबयाना
जितना बनता था , उस का हिसाब लगा कर 65 पैसे प्रति बीघा निश्चित करके सातरोड़ कलां
में निवास करने वाले पूनियों तथा गिरवाना पाना में 3 : 2 अर्थात पांच दुआंजा के
हिसाब से सारी जमीन का बटवारा करके किसानो को कब्जा देकर उन्हें मारुसी बनाया गया
था | भूमि का यह बटवारा सभी जातियों की सलाह से किया गया था | उस ने हिसार में
चितंग नहर पर पुल बनाया तथा नहर के दोनों तरफ दो कोठियां बनाई | कोठी का रूप
समुद्री जहाज जैसा था , इसलिए उसे जहाज कोठी कहते थे तथा पुल को जहाज पुल कहते थे
| एक कोठी में उसने रेस्ट हाउस बनाया था | वह किन्ही कारणों से बिमार हो गया |
इसलिए उसने अपना राज्य क्षेत्र ब्रिटिश इस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिया तथा वह
ब्रह्मपुर चला गया जहाँ 22 अगस्त 1802 ई* को उसका स्वर्गवास हो गया |
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अध्याय – तीन
(1)
प्रथम स्वतन्त्रता आन्दोलन के बाद भारत वर्ष का शासन ब्रिटिश सरकार के अधीन हो
गया था | उस समय छोटी सातरोड़ में दो पाने थे | पहला पाना धानिया था जिसमे पूनिया
गोत्र के चार बगड थे |
(1)--मांडा बगड – इसमें पूनिये ,खातलान उर्फ़ सिहाग , मोहराराम की संतान सिंघल
गोत्री जो मुंढाल से आकर इस गाँव में बसे थे | खातलान उर्फ़ सिहाग श्री भादरसिंह
मिरान गाँव से आकर यहा आबाद हुआ था | इस बगड का नम्बरदार श्री धनीराम था | इस बगड
का ठोलेदार श्री मोतीराम पुत्र नेह्चल दास था | इस समय रामफल नम्बरदार है |
(2)—सीरिया बगड – इस बगड में गिल , खातलान , नहरा और पूनिया गोत्र के लोग है |
इस बगड का नम्बरदार बिंजाराम था | बाद में अमरसिंह सुरबुरा तथा मामचंद नम्बरदार
बना था | उसका पुत्र नेकीराम और नेकीराम का पोत्र रामफल नम्बरदार बना था |
(3)—भिखान बगड – इस बगड का नम्बरदार मूलचंद था | उसके बाद शोभाचंद और आजकल
रामफल का पुत्र संजय है | इस बगड में पूनियों के अतिरिक्त दलाल गोत्र भी है जो
मसूदपुर से आकर यहा आबाद हुआ था |
(4)—महिया बगड – इस बगड में पूनियों के अतिरिक्त सूरा गोत्र भी है जो कैरू
बजीना से आकर यहा आबाद हुआ था | इस बगड का नम्बरदार मूलचंद था | उसके बाद फतेहसिंह
बना था | आजकल सुरेंदर पुत्र मनीराम नम्बरदार है |
तथा मित्तल गोत्री
महाजन , गर्ग और गोयल गोत्री अआदी तथा वशिष्ठ कोशिक , पुलिस्त, नागवान आदि
ब्राह्मण तथा भानखड पूनिये चमार निंदानिया धानक तथा सरोहा नाइ लालन गोत्री भार्गव
और पुहाल बाल्मीकि , जांगिड ब्राहमण तथा कुछ पंजाबी परिवार और मिरासी भी इस गाँव
में आबाद है
पाप्टान सोलंकी और बिश्नोलिया सैनी आदि भी रहते है |
(2)
गिरवान पाना – ग्रेवालो की अधिकता के कारण यह पाना गिरवान पाना कहलाता है | इस
में ग्रेवाल , बलहारा , नैन ,सहारण , झोरड़ , फोगाट , पंघाल , जाखड आदि गोत्र जाटों
के तथा सैनियों में बिश्नोलिया , जमाल्पुरिया , सांखला , दहिया , मिटाऊ , खुडानिया
अदि गोत्र है | ब्राहमणों में सारस्वत कण्व द्विवेदी रहते है | चमारो में माहिच ,
डैकवाल , नागर धानक , सीलन धानक , नरवाल , बरबड ,सम्भ्र्वाल राग आदि चमार ,
सिंघल,सुनार ,गर्ग, गुसाई , छिप्पी (दर्जी ) मनियार , कुम्हार , लुहार , नायक आदि
लोग भी रहते है | इस पाने में दो नम्बरदार तथा चार ठोलेदार है | दशरथ का पुत्र
मूलचंद मैट्रिक पास था | दुसरा नम्बरदार बीरसिंह का पिता बल्लूराम था |
(3)
भूमि बन्दोबस्त 1862-63 ई* -- अंग्रेजी सरकार ने सातरोड़ छोटी का भूमि
बन्दोबस्त किया था | इस में भूमि की सीमा बाँधी गयी थी | नक्शा नसीब तथा भूमि जमा
बंदी में लिखा है कि छोटी सातरोड़ में दो पाने थे | गिरवान और धानिया पाना | धनीराम
नम्बरदार के कारण धानिया पाना कहलाया था क्योकि धनीराम की जमानत के कारण दोनों
पानो को राजपूतों वाली जमीन मारुसी हुई थी जिसमे लिखा था कि 680 रुपये हर छमाही
भूमि आबयाना निश्चित करके जमानत धनीराम ने ली थी
कि यह मेरी जिम्मेवारी होगी कि समय पर आबयाना जमा होता रहेगा | उस समय
पटवारी भूपसिंह तहसीलदार मोहब्बत खां था | उस समय लोगो की मांग के कारण छोटी
सातरोड़ के दो गाँव सातरोड़ खुर्द एवं खास बनाये गये थे | उस वक्त सातरोड़ खास के 240
परिवारों की कुल जनसंख्या 842 थी जब कि
सातरोड़ खुर्द के 123 परिवारों की जनसंख्या 615 थी |
अध्याय – चार
1 – स्वतन्त्रता सेनानी
छोटी सातरोड़ गाँव में चार स्वतन्त्रता सेनानी और चार ही शहीद हुवे है जिनका
जीवन चरित्र निम्न प्रकार से है –
क)
स्वतन्त्रता सेनानी लाला हरदेव सहाय
इनका जन्म 26 नवम्बर 1892 ई* में सातरोड़ खुर्द के लाला मसुदिरम जी के घर हुआ
था | ये ग्रामीण शिक्षा के प्रवर्तक थे | इन्होनें 1912 ई* से 1923 ई* तक निजी
खर्चे पर प्राथमिक स्कूल चलाया था | वे 1919 ई* को कांग्रेस के सदस्य बने थे |
इन्होने पहली जेल यात्रा कटला रामलीला हिसार में जोशीला भाषण देने के कारण एक वर्ष
की जेल की सजा सुनाकर मुल्तान जेल में भेजा गया जहां उनकी मुलाक़ात स्वामी श्रधानंद
जी से हुई और उन्होंने निर्णय लिया कि जब तक लोग अनपढ़ रहेंगे तब तक स्वतन्त्रता के
महत्त्व को नही जान सकेंगे | इसलिए जेल से बहार आते ही विधा प्रचारिणी सभा का गठन
करके 66 प्राथमिक स्कूल 2 मिडल स्कूल और एक शिल्पशाला खोल कर अनपढ़ता के अँधेरे को
दूर भगाया था |
(2)
हिसार क्षेत्र में 1932-33 ई* तथा 1936-38-40 ई* को भयंकर अकाल पडा था तब
देवीलाल जी के पिता चौ* लेखराम के साथ मिलकर “ भाखड़ा लाओ , क्षेत्र बचाओ “ आन्दोलन
चलाया था | इस समय 1938 ई* में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सातरोड़ गाँव पधारे थे |
उन्होंने दूसरी जेल यात्रा 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में एक वर्ष की सजा
मियांवाली सेंट्रल जेल में काटी थी | उन्होंने कहत के समय लोगों की सहायता के लिए
100 सूत केंद्र खोल कर हजारों लोगों को रोजगार दिया था | स्वतन्त्रता के बाद जब
भारत वर्ष का नया सविंधान बनाया जा रहा था तब उन्होंने सविंधान निर्माण समिति को “
गाय ही क्यों “ नामक पुस्तक का अध्ययन करवाकर गो-ह्त्या बंद करवाने हेतु सविधान
में धारा 48 जुडवाई थी | जब 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरु सातरोड़ आये थे तब
उन्होंने कहा था कि गो- ह्त्या बंद हो जायेगी परन्तु गो ह्त्या बंद न हुई तब भारत
गो सेवक समाज की स्थापना करके आन्दोलन चलाये और स्वतंत्र भारत में भी कई बार गो
ह्त्या बंद करवाने के लिए जेल में गये थे | इन्होने भीषण प्रतिज्ञा की थी कि जब तक
भारत में गो हत्या बंद न होगी तब तक चारपाई पर नही सोऊँगा और न ही सर पर पगड़ी
बांधूगा | बार बार आंदोलनो के कारण उन का शरीर बिगड़ गया और 30 सितम्बर 1962 ई* को
हिसार के सिविल अस्पताल में इनका निधन हो गया | अग्रवाल समाज ने इन्हें समाज के
नवरत्नों में शुमार करके इनका आदरमान बढाया था |
ख ) आजाद हिन्द सेनानी श्री मुंशीराम सहारन
इनका जन्म 1912 ई* में एक साधारण किसान श्री हरनाथ सहारन के घर हुआ था | वे
सातरोड़ के प्राचीन स्कूल से मिडल तक शिक्षा के बाद 2-11-1934 को भारतीय सेना की
जाट रेजिमेंट बरेली में एक एक सिपाही के तौर पर भर्ती हुवे थे | ब्रिटेन और जापान
की 8 दिसम्बर 1941 ई* को युद्ध की घोषणा हुई थी | तब 41 वीं पंजाब रेजिमेंट के
भारतीय सेनिकों की बटालियन उत्तरी मलाया में भेजी थी | उनमे श्री मुंशीराम भी थे |
मलाया – थाईलेंड सीमा पर भयंकर युद्ध हुआ था | तीन दिन के लगातार युद्ध के समय
सप्लाई कट जाने से जापानी फ़ौज के सामने हार मानकर झुकना पड़ा | इसी प्रकार फरवरी
1942 को अंग्रेजी सेना ने भी सिगापुर में भी हार माननी पड़ी | रास बिहारी बोस ने
जापानी सरकार से मिलकर ज्ञानी प्रीतम सिंह ने बन्दिग्रह में जाकर भारतीय युद्ध
बंदी सेनिको से बातचीत करके सरदार मोहन सिंह सहित आजाद हिन्द संघ ( आई एन ए ) में
शामिल कर लिया | फिर जर्मनी से सुभाष चन्द्र बोस को बुलाकर उन्हें आजाद हिन्द फ़ौज
का कार्यभार रास बिहारी बोस ने सम्भलवा दिया | फिर 4 फरवरी 1944 को ब्रिटेन व्
अमेरिका के विरुद्ध आजाद हिन्द फ़ौज ने अरकं युद्ध के मोर्चे पर लड़ाई आरम्भ कर दी |
ब्रह्मा भारत सीमा पार करके 14 अप्रैल 1944 को मणिपुर राज्य में मोरांग के स्थान
पर स्वतंत्र भारत का तिरंगा झंडा फहरा दिया | ब्रिटेन और अमेरिका ने जापान के
हिरोशिमा तथा नागाशाकी आदि दो शहरो पर एटम बम फैंक दिए जिसके कारण जापानी सेना ने
शत्रुओं के आगे आत्म समर्पण करना पड़ा | ऐसी अवस्था में नेता जी सुभास चन्द्र बोस
ने रानी झाँसी रेजिमेंट की महिला सैनिकों को सुरक्षित थाईलेंड भेज दिया | स्वयं एक
जहाज के द्वारा फार्मोसा द्वीप की तरफ गुप्त स्थान को चले गये | आजाद हिन्द फ़ौज के
सभी सैनिक अंग्रेजी सेना की कैद में आ गये | उस समय मुंशीराम जी सिंगापुर में थे |
युद्ध बन्दियो को दिल्ली लाया गया | उन पर मुकदमा चलाया गया | देश के बड़े बड़े विधि
वेताओं तेज बहादुर सप्रू , कैलाशनाथ काटजू , भुला भाई देसाई , आसफ अली तथा पंडित
जवाहरलाल नेहरु ने 5 नवम्बर से 30 दिसम्बर 1945 तक अन्तराष्ट्रीय युद्ध बंदी
नियमों की दलिले देकर उन सबको मुक्त करवाया गया | मुक्त होने पर मुंशीराम जी घर
आये और होमगार्ड में प्रशिक्षक लगे | कुछ समय बाद वे बीमार हो गये और 13 जुलाई
1985 ई* को उनका निधन हो गया | श्री ओमप्रकाश उनके दत्तक पुत्र है | भारत सरकार ने
उनको आजाद हिन्द सेना की पेंशन दी थी |
ग ) स्वतन्त्रता सेनानी श्री चन्दगीराम -
इन का जन्म 6 दिसम्बर 1920 ई* को सातरोड़ खास के किसान तोखारम के घर माता धापा
देवी की कोख से हुआ था | इन्होनें मिडल तक की शिक्षा गाँव में ही तथा उच्च शिक्षा
प्राइवेट पास की थी | वे विधार्थी काल में ही भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद
गये थे | वे 1942 ई* को अखिल भारतीय नौजवान सभा के संदेश को पंजाब क्षेत्र में
भेजने के लिए अपने साथियों सहित लाहौर गये थे | लाहौर स्टेशन पर इन्हें गिरफ्तार
करके अदालत में पेश किया गया और इन्हें छह महीने की सजा सुनाकर शाहपुर जेल में भेज
दिया | जेल से छूटने के बाद इन्हें कुरुक्षेत्र और राजपुरा खादी ग्रामीण उधोग
केंद्र के संचालक बनाया गया | फिर उन्हे फरीदाबाद पोस्ट बेसिक स्कूल के
प्रधानाचार्य बनाया गया | सेवा निवृत के बाद 27 जुलाई 1993 ई* को उनका निधन हो गया
| उनके बच्चे फरीदाबाद में ही निवास करने लगे | भारत सरकार ने इन्हें स्वतन्त्रता
सेनानी की पेंशन दी थी |
घ ) श्री छोटेलाल स्वतन्त्रता सेनानी
इनका जन्म 7 नवम्बर 1922 ई* को सातरोड़ खास के किसान श्री तोखाराम ग्रेवाल के
घर हुआ था | इन्होने मिडल तक की शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की थी | आरम्भ में वे
बवानी खेड़ा के खादी भंडार में नियुक्त हुवे थे | बाद में जगाधरी भेज दिए |
उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया था फिर 1942 ई* को भारत छोडो
आन्दोलन में वे जगाधरी खादी भंडार केंद्र के प्रांगण में ही एक सप्ताह की भूख हड़ताल करके धरने पर बैठ गये |
इसी समय अम्बाला स्टेशन पर किसी अज्ञात व्यक्ति ने एक अंग्रेज दम्पति की हत्या
कर दी | पुलिस ने इस हत्या का आरोप उन पर लगा कर इन्हें गिरफ्तार करके कई महीनों
तक कठिन यातनाये देते हुवे अम्बाला कालका आदि थानों में बंद करके रखते रहे | उसके
बाद किसी थाणे में रखा गया जिसका कोई सुराग नही लगने दिया | अंत में पंजाब के कई
बड़े बड़े नेताओं के प्रयास से राज्यपाल के आदेश पर पुलिश पार्टी की कस्टडी में
जमानत दी गयी तथा घर पर ही नजर बंद रखा गया | फिर 1972 ई* में इन्हें ताम्रपत्र
देकर उन्हें स्वतन्त्रता सेनानी की पेंशन दी गयी | पानीपत में रहते हुवे 13 जनवरी
1982 ई* को ह्रदय गति रुकने के कारण इनका निधन हो गया |
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भाग – 2
सातरोड़ छोटी के बहादुर सैनिक जो शहीद हुवे उनके नाम है
1 – बोलिया बाबा हरिदास
2 – श्री मान्गेरम झोरड़
3 – श्री हुकुमचंद जाखड
4 – श्री दलजीत सिंह ग्रेवाल